जयपुर, राजस्थान।
आज राजस्थान की राजधानी जयपुर में श्री क्षत्रिय युवक संघ का हीरक जयंती समारोह आयोजित हुआ, इस समारोह के लिए जयपुर में लगभग 3 लाख से ज्यादा लोग शामिल हुए। इस समारोह में कांग्रेस और भाजपा के साथ अन्य दलों के नेता भी शामिल हुए। मुख्यत इस समारोह में क्षत्रिय समाज और राजपूत समाज के लोग शामिल हुए। क्षत्रिय युवक संघ को 75 साल पूर्ण होने पर यह आयोजन रखा गया था, 75 साल होने पर होने वाले समारोह को हीरक जयंती कहा जाता है।
इसको लेकर राजपूत समाज के लोग काफी दिनों से तैयारियां कर रहे थे, आज जयपुर में क्षत्रिय समाज के लोग केसरिया झंडे के नीचे एक साथ इतनी संख्या में एकजुट हुए और सभी ने क्षत्रिय धर्म और उसके आदर्शों के पालन का प्रण भी लिया।
श्री क्षत्रिय युवक संघ के संस्थापक तनसिंह कौन थे?
क्षत्रिय युवक संघ की स्थापना साल 1944 में तनसिंह ने जोधपुर में की थी। तनसिंह का जन्म 1924 में जैसलमेर के एक छोटे से गांव में हुआ था, जन्म के 4 साल बाद इनके पिता का का निधन हो गया था। इनकी मां ने तनसिंह को पढ़ने के लिए 80 किलोमीटर दूर बाड़मेर भेजा, बाड़मेर में पढ़ाई करने के बाद 14 साल की उम्र में तनसिंह जोधपुर गए, जहां से उन्होंने 10 वीं की पढ़ाई शुरू की। इसके बाद साल 1942 में तनसिंह झुंझुनूं के बिरला कॉलेज गए, जहां से उन्होंने बीए की पढ़ाई की, इसके बाद 1946 नागपुर से वकालत भी की।
तनसिंह 1949में बाड़मेर नगरपालिका के अध्यक्ष भी चुने गए थे, इसके बाद 1952 और 1957 में तनसिंह बाड़मेर से विधायक चुनकर राजस्थान विधानसभा पहुंचे थे। इसके बाद 1962 और 1977 में बाड़मेर से सांसद चुनकर लोकसभा भी पहुंचे थे।
तनसिंह के अंदर जवानी के दिनों से ही समाज के लिए कुछ करने की ललक थी, वो समाज के बारे में काफी सोचते थे। समाज को एकजुट करने के लिए तनसिंह ने साल 1944 में राजपूत छात्रावास जोधपुर से हीरक क्षत्रिय युवक संघ की स्थापना की। इसका पहला अधिवेशन 1945 में जोधपुर में ही हुआ। साल 1949 तक इस संघ के प्रमुख तनसिंह ही रहे, बाद में राजनीति में जाने के कारण इस संघ का प्रमुख आयुवान सिंह को बनाया गया। आयुवान सिंह के बाद एक बार फिर तनसिंह ने 1969 तक संघ प्रमुख का पद संभाला था।
वर्तमान में इस संघ के प्रमुख भगवान सिंह रोलसाहबसर है। श्री क्षत्रिय युवक संघ के 75 साल बाद भी आज संघ तनसिंह के आदर्शों पर चलता है. वहीं तनसिंह ने अपने जीवनकाल में डेढ़ दर्जन से अधिक किताबें भी लिखी. ऐसे में 22 दिसंबर को तनसिंह के विचारों पर फिर से एकजुट होने के लिए समाज एकजुट हो रहा है.
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