नमस्कार साथियों, किसान यह शब्द अपने आप में बहुत कुछ रखता हैं। हो सकता हैं आपकी नज़र में यह शब्द सामान्य हो। आज हम आपका यह भ्रम भी दूर करना चाहेंगे। आज हम आपको किसान की सही परिभाषा, किसान की सच्चाई और उसके त्याग के बारे में बताने जा रहे हैं। यह बातें हमने नहीं लिखी हैं किसी किसान भाई ने ही लिखी होगी। आइए अब जानते हैं किसान कौन हैं?
किसान का बेटा हूँ और किसान की बात ना करूं ... तो ऐसा बेटा किस काम का..? साधारणतया पूछने पर की किसान किसे कहते हैं? सामान्य उतर आता है - एक ऐसा व्यक्ति जो खेती करता है, अन्न उपजाता है, उसे किसान कहते हैं! पर मुझे लगता है किसान को इतनी छोटी परिभाषा में बांधना उसके साथ अन्याय होगा!!
आप सोच रहे होंगे कि फिर किसान किसे कहते हैं! अरे! किसान तो त्याग की मूर्ति है, उसे क्या परिभाषित करें! किसान तो संत है, दूसरों के लिए अपने सुख-चैन आनंद का बलिदान करने की उसे आदत सी हो गयी है! दूसरों की जिंदगी को अपने पसीने से हरा-भरा करना उसकी फितरत है!!
अब आप यह भी सोच रहें होंगे कि वह इतना क्या त्याग करता है बाकी सबके लिए! काम तो सभी करते हैं बैठे-बैठे कौन खाता है! तो थोड़ी देर के लिए आप मेरे साथ चलिए मैं आपको किसान की झौपङी लिए चलता हूँ!!
घर का अवलोकन कीजिएगा, सबसे पहले घर के बाहर पङे जूते चप्पलों को देखिये, ज्यादातर जोङियां फटी- पुरानी और मरम्मत की हुई व तले देखिए, इतनी सूलें, जितनी तो भीष्म पितामह के शरीर में बाण भी ना थे!! यदि आप किसान नहीं है तो अपने जूते देखिए एक भी काँटा है क्या! यानी काटों से खेलता किसान है और फूलों से घर किसी और के सजते हैं!!
आगे जाकर एक तरफ़ उनके बिस्तरों पर एक नजर डालिए! उनके पहनने वाले कपङो पर नज़र डालिए, फट्टी पुरानी गुदङिया और फ़टी पुरानी बनियानें आपकी तरफ़ झाकेगी!! कपास पैदा करनी हो या ऊन पैदा तो किसान ही करते हैं ना! तो फिर नये सोफे और गद्दे किसी और के घर में क्यों? नये सूट भी, यह त्याग नहीं है क्या?
अब उनके बच्चों पर भी नज़र डाल लो, सुगन्धित पाउडर की खुशबू तो नहीं आ रही है उनके बदन से, पैरों की बिवाईया भी संभाल लेना, नेशनल हाइवे से कम चौङी ना होंगी! फर्राटेदार अंग्रेजी तो नहीं बोल रहा है कभी कभार सरकारी स्कूल जो जाता है, रोज जायें भी तो कैसे? कभी खेत की रखवाली करता तो कभी बकरियां चराता है! अपने बच्चों का भविष्य उसकी आखों के सामने उजङ रहा है! क्योंकि वह देश के लिए अन्न उपजाता है, त्याग नहीं तो क्या है!!
सर्दी की ठिठुरन भरी रात को भी संभालना कभी, वो गर्म जयपुरी रजाई में लिपटा ना मिलेगा! वो अपने खेत में फसलों को पानी देते या नीलगाय, आवारा गौरक्षक की रखवाली करता मिलेंगा! अब अपनी नींद को गिरवी रख दी! अन्न ही तो उपजाना है, बाकी तो उसके पास ना कुछ है ना कुछ रहने वाला ही है! यह त्याग नहीं है तो क्या है भैया?
इतना सब करने वाले की मदद भी हम कम नहीं करते हैं, पटवारी के पास जायें या डाक्टर के पास, जज के पास जायें या वक़ील के पास, ग्राम सेवक के पास जायें या तहसीलदार के पास, मैनेजर के पास जायें या थानेदार के पास, सब निस्संकोच होकर उससे रिश्वत मांगेंगे, उन्हें पता है यह नीरा अनपढ़ किसान क्या जानें? और उन्हे बच्चों के लिए झूला,टीवी, कुलर जो लाना है व अच्छी स्कुल में बच्चों को जो पढ़ाने है!!
बहुत कुछ लिखने का मन करता है पर फिर पढ़ेगा कौन? बेचारे किसान को खेत का काम भी तो करना है!!
।जय ज़वान जय किसान।
किसान का बेटा हूँ और किसान की बात ना करूं ... तो ऐसा बेटा किस काम का..? साधारणतया पूछने पर की किसान किसे कहते हैं? सामान्य उतर आता है - एक ऐसा व्यक्ति जो खेती करता है, अन्न उपजाता है, उसे किसान कहते हैं! पर मुझे लगता है किसान को इतनी छोटी परिभाषा में बांधना उसके साथ अन्याय होगा!!
आप सोच रहे होंगे कि फिर किसान किसे कहते हैं! अरे! किसान तो त्याग की मूर्ति है, उसे क्या परिभाषित करें! किसान तो संत है, दूसरों के लिए अपने सुख-चैन आनंद का बलिदान करने की उसे आदत सी हो गयी है! दूसरों की जिंदगी को अपने पसीने से हरा-भरा करना उसकी फितरत है!!
अब आप यह भी सोच रहें होंगे कि वह इतना क्या त्याग करता है बाकी सबके लिए! काम तो सभी करते हैं बैठे-बैठे कौन खाता है! तो थोड़ी देर के लिए आप मेरे साथ चलिए मैं आपको किसान की झौपङी लिए चलता हूँ!!
घर का अवलोकन कीजिएगा, सबसे पहले घर के बाहर पङे जूते चप्पलों को देखिये, ज्यादातर जोङियां फटी- पुरानी और मरम्मत की हुई व तले देखिए, इतनी सूलें, जितनी तो भीष्म पितामह के शरीर में बाण भी ना थे!! यदि आप किसान नहीं है तो अपने जूते देखिए एक भी काँटा है क्या! यानी काटों से खेलता किसान है और फूलों से घर किसी और के सजते हैं!!
आगे जाकर एक तरफ़ उनके बिस्तरों पर एक नजर डालिए! उनके पहनने वाले कपङो पर नज़र डालिए, फट्टी पुरानी गुदङिया और फ़टी पुरानी बनियानें आपकी तरफ़ झाकेगी!! कपास पैदा करनी हो या ऊन पैदा तो किसान ही करते हैं ना! तो फिर नये सोफे और गद्दे किसी और के घर में क्यों? नये सूट भी, यह त्याग नहीं है क्या?
अब उनके बच्चों पर भी नज़र डाल लो, सुगन्धित पाउडर की खुशबू तो नहीं आ रही है उनके बदन से, पैरों की बिवाईया भी संभाल लेना, नेशनल हाइवे से कम चौङी ना होंगी! फर्राटेदार अंग्रेजी तो नहीं बोल रहा है कभी कभार सरकारी स्कूल जो जाता है, रोज जायें भी तो कैसे? कभी खेत की रखवाली करता तो कभी बकरियां चराता है! अपने बच्चों का भविष्य उसकी आखों के सामने उजङ रहा है! क्योंकि वह देश के लिए अन्न उपजाता है, त्याग नहीं तो क्या है!!
सर्दी की ठिठुरन भरी रात को भी संभालना कभी, वो गर्म जयपुरी रजाई में लिपटा ना मिलेगा! वो अपने खेत में फसलों को पानी देते या नीलगाय, आवारा गौरक्षक की रखवाली करता मिलेंगा! अब अपनी नींद को गिरवी रख दी! अन्न ही तो उपजाना है, बाकी तो उसके पास ना कुछ है ना कुछ रहने वाला ही है! यह त्याग नहीं है तो क्या है भैया?
इतना सब करने वाले की मदद भी हम कम नहीं करते हैं, पटवारी के पास जायें या डाक्टर के पास, जज के पास जायें या वक़ील के पास, ग्राम सेवक के पास जायें या तहसीलदार के पास, मैनेजर के पास जायें या थानेदार के पास, सब निस्संकोच होकर उससे रिश्वत मांगेंगे, उन्हें पता है यह नीरा अनपढ़ किसान क्या जानें? और उन्हे बच्चों के लिए झूला,टीवी, कुलर जो लाना है व अच्छी स्कुल में बच्चों को जो पढ़ाने है!!
बहुत कुछ लिखने का मन करता है पर फिर पढ़ेगा कौन? बेचारे किसान को खेत का काम भी तो करना है!!
।जय ज़वान जय किसान।
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